शैल - श्रृंग
शैल - श्रृंग हुंकार भरो तुम
जागो, अभय प्रयाण करो
सुलग रही है शिखा यज्ञ की
दे- दे आहुति सम्मान करो
रण की घड़ी, प्रलय की बेला
कुछ हुंकारों कुछ गान करो
चढ़ शैलाधिराज की छाती पर
क्यों न आज मधुपान करो
जागो -जागो हे मुक्त केशिनी
तिमिर मध्य संधान करो
समय सिन्धु की दिशा मोड़
अभ्यागत का सम्मान करो
अमृत कलश लिए कलानिधि
नभ से तुम्हे निहार रहा है
देख रहे हैं नभ से तारे
अभ्यागत तुम्हे पुकार रहा है
मचल रहा है आज भ्रमर
होठों का अमृत -रस पीने को
लिए भार सुरभित यौवन का
हैं गुलाब कलिका,खिलने को
बनो आज परिधान स्वयं तुम
बन तितली नव गान करो
ये नखत अमा के कहते हैं
हे देवि ! उठो , मधुपान करो
वेणु-कुंज में सजा के जूगनू
उमड़ी सुषमाओं सी आकुल
कर नख-शिख श्रृंगार सोलहों
आओ आज बाहू में व्याकुल
शालिमा ' शैल '
शालिमा ' शैल '
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